संधि रक्षक सीरप (Sandhi Rakshak Syrup)


 संधि रक्षक सीरप
मांस-पेशियों, पीठ, कमर व पसली के दर्द के लिए
         विवरण :- उचित आहार-विहार का पालन नहीं करने, असमय भोजन करने, ऋतु के प्रतिकूल भोजन करने, पूर्व के भोजन के पचे बिना भोजन कर लेने, बिना रूचि के भोजन करने, रूक्ष, शीत, अल्प तथा लघु भोजन निरन्तर करने, चिंता, शोक, अधारणीय वेदों को रोकने, आदि कारणों से शरीर में वायु प्रकुषित हो जाती है | अग्निमांद्य उत्पन्न हो जाता है | अग्निमांद्य रस धातु का निर्माण रोकता है तथा शरीर में आमरस की वृद्धि होने लगती है |                                                       Like Us on FB
       रस का निर्माण रुक जाने से रस से आगे बनने वाली धातुओं-रक्त, माँस, मेद, अस्थि, मज्जा तथा शुक्र का निर्माण होना तथा उनकी क्रियाशीलता रुक जाती है | मेद की या तो क्षीणता हो जाती है या फिर वृद्धि हो जाती है | मेद की वृद्धि हो जाने के कारण अस्थियाँ घुटनों का भार नहीं उठा पाती है | अस्थियों को चिकनाहट नहीं मिल पाती है | इससे अस्थियों में बारीक दरारें आने लगती हैं या उनमें वक्रता तक आ जाती है | मांसपेशियों की क्रियाशीलता प्रभावित होती है, जिसके कारण शुक्र का निर्माण नहीं हो पाता है | परिणामस्वरूप शरीर में ओज की कमी हो जाती है | ओज के अभाव में अंग-प्रत्यंगों का संचालन, मस्तिष्क की कार्य-प्रणाली प्रभावित हो जाती है | व्यक्ति अपने आप को असहाय समझने लगता है | अरूचि, क़ब्ज़, सिरदर्द, बुखार, दुग्ध युक्त पसीना, प्यास, आलस्य, अंग-प्रत्यंगों की शून्यता, शरीर के जोड़ों में तीव्र वेदना, शोथ आदि विकार उत्पन्न हो जाते हैं | विभिन्न वातज व्याधियों से छुटकारा दिलाने के उद्देश्य से इस प्रभावी आयुर्वेदिक योग का निर्माण किया गया है |                                                                                                              Like Us on FB
गुणधर्म :- यह सीरप आमवात, संधिगत वात, संधीशोथ, लंगड़ापन, गृधसी, कशेरूक शोथ, जीर्ण कटिशूल, पैरों की ऐंठऩ, कर्णनाद, कर्णशूल आदि व्याधियों की चिकित्सा में अत्यन्त गुणकारी है | यह पेशी-दाैर्बल्य दूर करते हुए रक्तसंचार को सुधारने तथा यकृत की कार्यप्रणाली सुधारने में बहुत    सहायक है | यह क्षुधा जागृत करने में भी लाभकारी है | प्रभाव मे यह एक मृदु विरेचक है |

सेवन विधि :- चाय के 2 से 4 चम्मच भरकर सीरप की मात्रा का सेवन समभाग गुनगुने जल के साथ दिन मे 2 बार भोजन के पश्चात् किया जाए | अथवा इसका सेवन चिकित्सक के परामर्श के अनुसार किया जाए |                                                      Like Us on FB
परामर्श :- इसे एक ठंडे एवं सूखे स्थान में रखें | प्रयोग के पूर्व शीशी को भली प्रकार हिला लें |

सहयोगी औषधि :-
संधि रक्षक कैप्सूल :- संधि रक्षक कैप्सूल गर्म पानी या दूध के साथ 2 कैप्सूल सुबह 8 बजे एवं 2 कैप्सूल रात को सोने से 1 घण्टा पहले लेवें |
संधि रक्षक तेल  :- 2 से 3 चम्मच संधि रक्षक तेल की 20 से 30 मिनट तक प्रभावित अंग पर सुबह-शाम मसाज करें |

परहेज :- खटाई, मिठाई, तेल में तली हुई चीज़ें, आलू, चावल, बैंगन, माँस, उड़द दाल, आदि सभी वायुवर्धक चीज़ों से परहेज करें |

     No Side Effect

                           AYURVEDIC MEDICINE 

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